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संस्कारों से संस्कारित हो, बने जगत के बन्धु हैं,

मंगल करने में उन सबको, भक्ति भाव से वन्दूँ मैं । संस्कारित हो जीवन सबका, इसीलिए संस्कार विधि।

कही गई है शान्ति सौख्य अरु, शीघ्र मिले अब आत्मनिधि।

मैं उन सर्व अरहन्तों, सिद्धों के चरणों में अति भक्तिपूर्वक नमस्कार करती हूँ जिन्होंने क्रोधादि सर्व कषायों एवं स्पर्शन आदि पाँचों इन्द्रियों को पूर्ण रूप से जीत कर परमात्म पद प्राप्त किया है। मैं उन आचार्यों, उपाध्यायों और साधु भगवन्तों को भी अत्यन्त भक्तिपूर्वक नमन करती हूँ जो पूर्ण निर्ग्रन्थ दिगम्बर रूप के धारक हैं और परम शान्त अवस्था को प्राप्त है। मैं दीक्षागुरु परम पूज्य आचार्यकल्प विवेकसागर जी महाराज को भी कोटि-कोटि वन्दन करती हूँ, जिनके चरणप्रसाद से ही मैं मोक्षमार्ग को प्राप्त कर सकी हूँ। मैं उनके चरणों की आराधना करना भी नहीं भूल सकती जिनके दर्शन करके एवं वाणी सुनकर मुझे साधना के जो सूत्र मिले उनको शब्दों के माध्यम से नहीं कहा जा सकता है वे हैं विश्वपूज्य संतशिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज, उनके चरणों में पुन:पुन: वन्दन-वन्दन....। मैं उस माँ का भी बार-बार स्मरण करती हूँ जिसने मुझे अंगुली पकड़ कर मोक्षमार्ग में चलना सिखाया, जिन्होंने मुझे छोटे-बड़े सभी ग्रन्थों को पढ़ाया, सही पूछा जाय तो जिन्होंने मुझे जीवन जीना सिखाया वे हैं (स्व.) आर्यिका माँ विशालमती जी, उनके पदारविन्दों में मेरे शत-शत नमस्कार-नमस्कार…।

संसार में मनुष्य मानव बनकर भी जी सकता है और दानव बनकर भी। मनुष्य में मानवता एवं दानवता के संस्कार जन्म के पहले गर्भावस्था से ही प्रारम्भ हो जाते हैं। सन्तान को मानव या दानव बनाने का मुख्य श्रेय माँ को है, क्योंकि कहा भी है

 

उपाध्यायान्दशाचार्यः, आचार्याणां शतं पिता ।

सहस्रांस्तु पितृन् माता, गौरवेणातिरिच्यते ॥

अर्थ - दस उपाध्यायों से एक आचार्य, सौ आचार्यों से एक पिता तथा हजार पिताओं से एक माता श्रेष्ठ है।

मान्टेसरी का मन्तव्य भी यही है :

A Good Mother is better than hundred teachers. (एक अच्छी माँ सौ शिक्षकों से बेहतर है)

 

माँ के साथ गौण रूप में पिता, दादा-दादी, काका-काकी, मित्रजन, बुआ आदि परिजन भी सम्मिलित हैं। यद्यपि पिता को भी माता के समान बच्चे में संस्कार डालने का अधिकार, कर्त्तव्य तथा श्रेय होता है, लेकिन समय के अभाव में एवं व्यावसायिक व्यस्तता के कारण वर्तमान में करना चाहते हुए भी वह अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पा रहा है इसलिए उसे गौण कहा गया है। उसे भी अपना कर्तव्य पूरा करके माँ के समान श्रेय प्राप्त करना चाहिए। माँ यदि चाहे तो अपनी संतान को श्रेष्ठ संस्कारों से संस्कारित करके राम, महावीर आदि के समान सर्वतोमुखी प्रतिभाशाली, गाँधीजी के समान सत्यवादी, अहिंसक दीवान अमरचन्द जी के समान शेर को जलेबी खिलाने में समर्थ, लिंकन के समान परोपकारी, भामाशाह के समान नि:स्वार्थ-दानवीर, अर्जुन जैसे वीर, एकलव्य जैसे गुरुभक्त, श्रवणकुमार जैसे मातृ-पितृ भक्त, राम जैसे आज्ञाकारी, लक्ष्मण जैसे भ्रातृ प्रेमी और अकलंक के समान धर्मरक्षक बनाकर इतिहास में अजर-अमर बना सकता है। इसी प्रकार अपनी बेटी को संस्कारित करके सीता अंजना, द्रौपदी के समान कठिन परिस्थितियों में भी सहनशील एवं पति की हितेच्छु, लक्ष्मीबाई के समान देशरक्षिका, मदर टेरेसा जैसी परोपकारपरायणा, पन्ना धाय, जीजाबाई जैसी स्वामिभक्त, मीराबाई जैसी भक्तशिरोमणि एवं उसके प्रति लापरवाही बरत कर फूलनदेवी जैसी डाकू, कैकेयी जैसी स्वार्थपूर्ण-निर्दय, मन्थरा जैसी फूट डालने में चतुर तथा सूर्पनखा जैसी व्यभिचारिणी भी बना सकती है।

यद्यपि हर माँ अपनी संतान को श्रेष्ठ आदर्श रूप पावन, जगत्प्रसिद्ध एवं जगत्पूज्य बनाना चाहती है लेकिन बच्चों में संस्कार डालने की विधि की जानकारी नहीं होने से अथवा जानते हुए भी स्वार्थपरायणता प्रमाद, भोगों की आसक्ति, संकोच अथवा मोह के वशीभूत होकर अपनी संतान को श्रेष्ठ बनाने में सफल नहीं हो पाती है और भविष्य में पश्चाताप के आँसू बहाती रहती है। मेरे विचार से शायद ही कोई माँ ऐसी होगी जो अपनी सन्तान के भावी जीवन को काला, अंधकारमय, दुःखमय देखना चाहती होगी या बनाना चाहती होगी, लेकिन वर्तमान में अधिकतर मानवों में दानवता सहज रूप से दिखाई देती है। संसार में बहुत कम मानव ऐसे होंगे जो शांति से जीते हैं, शान्ति से जीने देते हैं और सभी लोग शान्ति से जियें, ऐसा प्रयास करते हैं, ऐसी भावना करते हैं। संसार में रहकर भी अधिक-से-अधिक प्राणी सुख-शान्ति से जियें, सबका जीवन आनन्दमय/ सुखमय बने। यह तभी सम्भव है जब हम अपनी संतान को संस्कारित करें जिससे पूरी दुनिया भले ही सद्पुरुष नहीं बन पाये, लेकिन हमारी संतान तो संस्कारित होकर अमृतमय जीवन बिता सके, ऐसी मेरी भावना है। इसके लिए हर माँ, बेटी, बहू, दादी को बच्चों को संस्कारित करने की कला/विधि मालूम होना अति आवश्यक है।

Meditation

The Team

Vrati Usha Maa

Co-Founder

Head Counselor

Posses Five Pratimas

15+ years of Research on Garbh Sanskar

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